पीएसी से सिविल पुलिस में गए लगभग एक हजार कर्मियों को एक झटके में पदावनत कर उनके मूल काडर में वापस किए जाने का आला पुलिस अफसरों का फैसला अब उन पर भारी पड़ रहा है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस फैसले पर नाराजगी जताते हुए डीजीपी हितेश चंद्र अवस्थी को ऐसे सभी कर्मियों की नियमानुसार पदोन्नति सुनिश्चित कराने के निर्देश दिए हैं। उन्होंने डीजीपी से कहा कि वह इसके लिए जिम्मेदार अधिकारियों का उत्तरदायित्व निर्धारित कर इसकी रिपोर्ट शासन को दें।
मुख्यमंत्री ने कहा है कि शासन के संज्ञान में लाए बगैर ऐसी कार्रवाई से पुलिस के मनोबल पर प्रभाव पड़ता है। इसके बाद पुलिस विभाग के अफसर अपने बचाव को लेकर तर्क गढऩे में लग गए हैं। वहीं, डीजीपी ने कहा कि विभाग के अफसरों के साथ बैठक कर संबंधित कर्मियों को प्रोन्नत करने पर विचार-विमर्श किया जाएगा। जहां तक उत्तरदायित्व निर्धारण करने का सवाल है तो पूरे प्रकरण का परीक्षण कर इसकी रिपोर्ट शासन को सौंपी जाएगी।
पीएसी कर्मियों को सिविल पुलिस में तैनात किया जाता रहा है। इन्हें वहां वरिष्ठता सूची में शामिल कर प्रोन्नति भी दी जा रही थी। सिविल पुलिस की तरह प्रोन्नति को लेकर पीएसी के कुछ कर्मियों ने उच्च न्यायालय में रिट दायर की थी। इसके बाद पुलिस भर्ती बोर्ड ने ऐसे सभी मामलों की जानकारी मांगी। तब पुलिस महानिदेशक मुख्यालय ने एक समिति बनाई।
समिति की रिपोर्ट के अनुसार 932 आरक्षी पीएसी के पद पर भर्ती हुए थे। इनमें 22 आरक्षी नागरिक, 890 मुख्य आरक्षी नागरिक पुलिस और 6 उपनिरीक्षक नागरिक पुलिस के पद पर तैनात थे। 14 कार्मिक सेवानिवृत्ति/ऐच्छिक सेवानिवृत्ति व मृत्यु के कारण अब पुलिस में नहीं हैं। इसके बाद पुलिस महानिदेशक के अनुमोदन से 918 कर्मियों को आरक्षी पीएसी के पद पर पदावनत करते हुए इनकी नियुक्ति वापस पीएसी संवर्ग में कर दी गई।
पीएसी के अफसर को कहा गया कि इनमें से जो आरक्षी नियमावली के प्रावधानों के अनुरूप मुख्य आरक्षी पीएसी/ प्लाटून कमांडर के पद पर पदोन्नति प्राप्त करने के पात्र हैं, उनकी पदोन्नति की कार्यवाही पीएसी मुख्यालय समयबद्ध तरीके से कराए।